एक सी दिखती थी माचिस *की वो तीलियाँ* पर सभी ने अपना एक *अलग ही रंग दिखाया*.....
एक जैसी ही *दिखती थी*...माचिस की *वो तीलियाँ*
कुछ ने *दिये जलाये*......और *कुछ ने घर*
कुछ ने महकाई *अगरबत्तियां मंदिरों में*
तो कुछ ने सुलगाये *सिगरेट के कश*
कहीं *गरमाया चूल्हा*...और *बनी रोटियाँ*
तो कहीं *फटे बम*....और *बिखरी बोटियाँ*
जली कहीं *शादी में बन हवनकुंड* की अगन
तो फूँकी गयी दहेज़ की *कमी से कोई सुहागन*
*काजल* कभी नवजात *शिशु का बनाया*
तो शमशान में किसी *चिता को जलाया*
एक सी दिखती थी माचिस *की वो तीलियाँ* पर
सभी ने अपना एक *अलग ही रंग दिखाया*.....
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